वो सर्दियों की रात थी
अब गर्मियों के दिन हैं
वो हुजूम जो चौक चौबारों बस अड्डों तक उठा था
अब आराम फरमा रहा है...
मुद्दा रेप का रहा हो या लोकपाल का
हम चिल्लाते हैं , घर से निकलते हैं
फिर घर लौट के भूल जाते हैं
जब फास्ट ट्रेक अदालतें महीनो लगा के
आइन्दा सालों लगाने वाली हों
तो क्या बेहतर नहीं कि विक्टिम
खुद ही गुनेहगार का क़त्ल ही कर दे
गांधीवादियों से अनुरोध है कि
अहिंसा का धर्म भेडियों पर लागू नहीं होता
मुझे तो आदत ही है
उस मुद्दे में नहाने की
जिसके बासे पानी से तुम्हे बू आती है
हम भुला दिए जाते हैं
क्यूंकि हमें खुद भूलने की आदत है
हुजूम में जोश होता है
इन्किलाब में मकसद और मियाद
मुद्दा जब छोटे और बड़े लुटेरे का हो
तो भले छोटे को न चुने
कम से कम
बड़े लुटेरे के खिलाफ तो चुने
क्यूंकि अगर तुम नहीं चुनोगे
तो मैं तुम्हारे खिलाफ चुनूंगा
और वो लुटेरा बड़ा ही होगा … !!!