Monday 31 December 2012

अकबरी ज़माने की बात है ...

अकबरी ज़माने की बात है ...


एक गाँव में ज़मींदार के पास सैकड़ों सांड थे। ये सांड आस पास के गाँवों तक की फसल बर्बाद कर देते थे। सो गाँव वाले फ़रियाद ले के राजा के पास गए। फैसला हुआ कि  आगे से जो भी सांड फसल बर्बाद करेगा, उसे कांजी हाउस (आवारा जानवरों को बाँधने की जगह ) की जगह बूचडखाने में कटवा दिया जाएगा। गाँव वाले ख़ुशी ख़ुशी लौट आये। महीने भर बाद सांड फिर खेतों में घुस गए। 
ज़मींदार को चिंता हुई की उसके बैल नाहक मारे जायेंगे, सो वो जा पहुचा कोतवाल के पास। कोतवाल ने पांच अशर्फियों में सांड बूचडखाने की जगह कांजी हाउस भेज दिए। ज़मींदार पंहुचा कांजी हॉउस के मालिक के पास। उसने पांच अशर्फियाँ ली और कहा कि  तुम वजीर को सम्हाल लो, बाकी मैं देख लूँगा। वजीर ने बीस अशर्फियों में हामी भर दी। तयशुदा दिन पर मुकदमा शुरू हुआ।

राजा- ज़मींदार तुम्हारे सांड खेत में घुसे थे?
ज़मींदार- हैं ...? सांड...? न जी माहराज,... मैं तो बकरियां पालता हूँ 
गाँव वाले- महाराज, ये झूठ बोल रहा है।
वजीर - तुम सब चुप रहो नहीं तो महाराज की गुस्ताखी में फांसी चढ़ा दिए जाओगे 
राजा - जानवरों को हाज़िर करो 
(कांजी हाउस का मालिक सारे भैंसों पर चूना पोत  के ले आया)
राजा- ये इतने बड़े बकरे?
ज़मींदार- माहराज मेरे खेत में बड़ी घांस होती है, वही इनको पीस के खिलाता हूँ, सो ये इतने बड़े हो गए हैं 
गाँव वाले- माहराज झूट बोलता है 
वजीर- सिपाहियों इन सब गाँव वालों ने माहाराज के सामने गुस्ताखी की है, इन सभी को पांच पांच कोड़े रसीद करो 
(गाँव वाले रहम रहम चिल्लाते रहे और जल्लाद कोड़े बरसाते रहे )
फिर राजा तीन महीने को काश्मीर घूमने निकल गया, लौट के वापस आया तो मुकदमा फिर शुरू हुआ

राजा- घांस पीस के क्यूँ खिलाते हो? 
ज़मींदार- माहराज, ये अजब नस्ल के बकरे हैं, इनके दांत ही नहीं होते 
(तीन महीने में ज़मींदार ने पांच भैंसों के दांत तुडवा दिए  थे )
राजा- मुझे तसल्ली नहीं, मै खुद इनके मुह देखूंगा 
राजा ने सांडों के तीन मुह देखे और तसल्ली कर ली 

राजा - हाँ तो फैसला हो गया, ये अजब नस्ल के बकरे हैं... सांड नहीं...; इनको वापस ज़मींदार को सौंप दो, और इस फैसले पर मुस्तैदी से अमल हो कि  सांड अगर फसल बर्बाद करे, तो उसे सीधे बूचडखाने भेज दिया जाए ...

वजीर, ज़मींदार, कोतवाल  और बूचडखाने का मालिक - महाराज का इकबाल बुलंद रहे...!!!!!!!! ऐसा इन्साफ न आज तक देखा न सुना।तारिख आपके इन्साफ को सदियों तक बयान करेगी ...!!!!!!!!

रियासत में फिर दोबारा कभी खेतों में सांडों के घुसने की शिकायत नही  आई। 


अकबरी ज़माने की बात है ...


वैसे, सुना है देश में रेप के विरुद्ध कानून बदलने जा रहा है ???

Wednesday 12 December 2012

तीसरी की किताब ...


एक अरसे पहले की बात है। सैनिक स्कूल से हूँ। स्कूल में दौड़ भाग, खेल कूद और पी टी परेड से बदन चुस्त और सेहत दुरुस्त रहती थी। फिर बरसों बैठे रहने के बाद कमर 30 से 32 हुई तो मुझे चिंता सताने लगी। सोचा डम्बल शम्बल भांज  के थोडा फिट हो जाऊं। गूगल देव से दिल्ली के खेल कूद सामान के दूकानदारों के पते मांगे। भाई हम ठहरे सिंगल पसली आदमी, सो अपनी शर्म और झिझक को छिपाने के लिए एक हट्टे कट्टे  दोस्त को ले कर जा पहुंचे करोल बाग़ में गुलाटी स्पोर्ट्स। ये दूकान दूकान कम और गोदाम ज्यादा लगती है, शायद इसीलिए यहाँ शहर से लगभग आधे दाम में सामान मिलता है।ये मार्केटिंग के खर्चे का अतिरिक्त बोझ आपकी जेब पर नहीं डालते।अपने वजन के हिसाब से हमने सबसे हलके लड़कीनुमा डम्बल खरीद लिए। बचपन में दीपक भारती के साथ स्केटिंग सीखी थी, सो कुछ स्केट्स के पहियों पर ऊँगली घुमा के पुराने दिन ताज़ा किये।साइकिल के बाद स्केट्स ही ऐसी चीज़ थी जिसने मुझे आज़ाद परिंदे की फीलिंग्स सिखाई। 

पैसे देने के लिए जैसे ही काउंटर  पर पहुचे, तो एक सत्तर साल का बुजुर्ग तीसरी क्लास की किताब पढ़ रहा था। गौर से देखा तो पास ही मोरल साइंस की किताबों का ढेर लगा था। गुफ्तगू शुरू हो गई। उसने बताया कि  कैसे पुराने दिनों में कसरत का रिवाज़ रहता था, कैसे बड़े बड़े मुगदल (विदेसी डम्बल के देसी महा बाप) भांजे जाते थे। "आप की बहिन बेटियों की इज्जत ट्रेन में नहीं लुटी, तो आप क्या जाने आदमी के बाजुओं में ताकत का क्या मतलब होता है" उसकी एक बात ने मुझे महीनो कुरेदा।एक बात ही बटवारे का दर्द बयान कर गई।मैं इस दर्द को समझने में शायद उम्र और अकल  से बहुत छोटा हूँ।कुछ दर्द शायद सदियों में भी नहीं मिटते।
फिर बात हुई मोरल साइंस की किताबों की। "आप बड़े हो के सब पढ़ते हो,डाक्टर इंजीनियर बनते हो और बचपन की बेसिक बातें भूल जाते हो। दोस्त पड़ोसियों की मदद करना, भूखों को खाना खिलाना, कमजोर के लिए लड़ना। चाचा चौधरी और बिल्लू - पिंकी की किताबों में भी सामाजिक जिम्मेदारियों से भरी बातें होती थी, (बैटमेन  में क्या है, ये मुझ गंवार से मत पूछियेगा। )
फिर बातों बातों में उसने दोनों हाथों में एक एक मुगदल लिए और आठ दस बार भांज दिए। हमने मन ही मन सोचा बुजुर्ग आदमी है, मुगदल हल्के  होंगे। फिर मेरी अर्ध पारदर्शी  काया  पे तरस खाते हुए उसने एक मुगदल मेरे हट्टे कट्टे दोस्त को थमा दिया। मैं भौचक्का रह गया जब भांजना तो दूर, मेरा दोस्त उस मुग्दाल को दोनों हाथों से सीधा खड़ा भी न रख पाया।पुराने देसी घी का दम मुद्दतों माद देखा मैंने।कभी फुर्सत मिले तो जरूर जाइएगा गुलाटी स्पोर्ट्स (भाई इस विज्ञापन का गुलाटी ने मुझे एक भी रूपया नहीं दिया।)

भाई वो बात अरसे पहले की है, आज भी सोचता हूँ, हमारे देश में पहले अखाड़े होते थे, नाग पंचमी के दंगल मैंने बचपन में खूब देखे थे। अब नाईट शिफ्ट वाले काल सेंटर हैं। सेहत और शहर जैसे एक दुसरे के दुश्मन हैं। 
इन सब से ऊपर अक्सर सोचता हूँ, और मिस करता हूँ अपनी तीसरी की मोरल साइंस की किताब को। काश उसे जवानी में दो चार बार और पढता तो एक बेहतर इंसान होता। 
वैसे, आप आजकल क्या पढ़ रहे हैं?

Wednesday 5 December 2012

FDI बोले तो ...फाड़ दो इण्डिया



बचपन में नानी कहानी सुनाती थी। कहानी सुनने में हूंकने  (बीच बीच में हामी भरने ) का नियम रहता था। 
ऐसी एक कहानी थी एक रानी की कहानी। किस्सा कुछ यूँ था कि रानी के पास एक बर्तन था जिसमे एक किलो दूध था, एक पाव  की चाय बन गई, एक पाव  की मिठाई , एक पाव का दही और बर्तन में सवा किलो दूध बचा था।मैंने हामी में हूँ कर दी। नानी बोली, कैसा लाला है तू? एक किलो से तीन पाव जाने के बाद सवा किलो कैसे बच  सकता है?
आज संसद में सरकार वही कहानी पूरे देश को सुना रही है। रिटेल में ऍफ़ डी  आई की कहानी। सारे मजदूर किसान फलेंगे फूलेंगे।सारे बिचौलिए ख़तम हो जायेंगे। भाई मेरी मूर्खता मुझे बताती है की सब से ज्यादा बिचौलिए तो सरकारी कामो में लगे हैं। राशन की दुकानों से ले कर आर टी ओ तक।
टी वी तो आप देखते ही हैं, अखबार भी पढ़ते हैं। क्या आप बता सकते हैं कि  पिछली मर्तबा आपने कब खबर पढ़ी थी कि  "किसी मिठाई की दूकान से त्यौहार पर मिठाई खरीद कर खाने से किसी की सेहत बिगड़ी हो? ऐसा कभी कभार ही होता है, पर हर दीपावली पर न्यूज चैनल मिलावटी दूध की खबर इतनी बढ़ा  चढा कर दिखाते क्यूँ दिखाते हैं? भाई मिठाई नहीं बिकेगी तो क्या बिकेगा? जवाब है कैडबरी और कुरकुरे। अब यही फार्मूला देश के संपूर्ण रिटेल पर लागू होगा। आने वाले दिनों के विज्ञापन भी बदल जायेंगे 
क्या आप खुले खेतों का गेहूं खाते हैं? इसमें कितने बेक्टीरिया होंगे जो आपके बच्चे के लिया जानलेवा हो सकते हैं, खाइए फलाना कंपनी का प्रोसेस्ड गेहू।
डेड सी से परिष्कृत नमक, जो आपकी दाल में जगाये एक इंटर नेशनल महक, खाइए और खो जाइए (या चाहें तो भाड़  में जाइये)
असंगठित खुदरा व्यापर कहीं भी किसी भी स्तर  से संगठित खुदरा का मुकाबला नहीं कर सकता। इस दूध की मलाई और मक्खन किधर जाएगा, सबको पता है। 

नानी सच्ची थी, नानी की कहानियाँ भी सच्ची थी। अफ़सोस कि  मैं वोट डालते वक़्त नानी की कहानियाँ भूल गया। अरे ! आप वोट डालने नहीं आये थे? सॉरी, भूल गया था, आपने वोट की छुट्टी में कई पेंडिंग काम जो निपटाने थे, काम निपट गए, और देश पेंडिंग रह गया।