बचपन में नानी कहानी सुनाती थी। कहानी सुनने में हूंकने (बीच बीच में हामी भरने ) का नियम रहता था।
ऐसी एक कहानी थी एक रानी की कहानी। किस्सा कुछ यूँ था कि रानी के पास एक बर्तन था जिसमे एक किलो दूध था, एक पाव की चाय बन गई, एक पाव की मिठाई , एक पाव का दही और बर्तन में सवा किलो दूध बचा था।मैंने हामी में हूँ कर दी। नानी बोली, कैसा लाला है तू? एक किलो से तीन पाव जाने के बाद सवा किलो कैसे बच सकता है?
आज संसद में सरकार वही कहानी पूरे देश को सुना रही है। रिटेल में ऍफ़ डी आई की कहानी। सारे मजदूर किसान फलेंगे फूलेंगे।सारे बिचौलिए ख़तम हो जायेंगे। भाई मेरी मूर्खता मुझे बताती है की सब से ज्यादा बिचौलिए तो सरकारी कामो में लगे हैं। राशन की दुकानों से ले कर आर टी ओ तक।
टी वी तो आप देखते ही हैं, अखबार भी पढ़ते हैं। क्या आप बता सकते हैं कि पिछली मर्तबा आपने कब खबर पढ़ी थी कि "किसी मिठाई की दूकान से त्यौहार पर मिठाई खरीद कर खाने से किसी की सेहत बिगड़ी हो? ऐसा कभी कभार ही होता है, पर हर दीपावली पर न्यूज चैनल मिलावटी दूध की खबर इतनी बढ़ा चढा कर दिखाते क्यूँ दिखाते हैं? भाई मिठाई नहीं बिकेगी तो क्या बिकेगा? जवाब है कैडबरी और कुरकुरे। अब यही फार्मूला देश के संपूर्ण रिटेल पर लागू होगा। आने वाले दिनों के विज्ञापन भी बदल जायेंगे
क्या आप खुले खेतों का गेहूं खाते हैं? इसमें कितने बेक्टीरिया होंगे जो आपके बच्चे के लिया जानलेवा हो सकते हैं, खाइए फलाना कंपनी का प्रोसेस्ड गेहू।
डेड सी से परिष्कृत नमक, जो आपकी दाल में जगाये एक इंटर नेशनल महक, खाइए और खो जाइए (या चाहें तो भाड़ में जाइये)
असंगठित खुदरा व्यापर कहीं भी किसी भी स्तर से संगठित खुदरा का मुकाबला नहीं कर सकता। इस दूध की मलाई और मक्खन किधर जाएगा, सबको पता है।
नानी सच्ची थी, नानी की कहानियाँ भी सच्ची थी। अफ़सोस कि मैं वोट डालते वक़्त नानी की कहानियाँ भूल गया। अरे ! आप वोट डालने नहीं आये थे? सॉरी, भूल गया था, आपने वोट की छुट्टी में कई पेंडिंग काम जो निपटाने थे, काम निपट गए, और देश पेंडिंग रह गया।
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