Wednesday 18 April 2012

पट्टूकोट्टाइ की निबौलियाँ... !!!

किसी आकस्मात काम से पट्टूकोट्टाइ जाना तय हुआ. गूगल देवता ने रास्ता समझाया.टर्मिनल ३ से विमान चल दिया. खराब मौसम में विमान यूँ थर्राया कि एक बार तो छोटे शहरों से विलुप्त हो चुके "भट" की याद ताज़ा हो गई. खैर, चेन्नई से कुम्भ्कोनम की बस पकड़ी.

कबीर की नसीहत ”जो सोवत है सो खोवत है ” का बहिष्कार कर मैंने झपकी मार ली , और रास्ते के मंज़र से चूक गया . रा...त कुम्भ्कोनम में बिताई .

सुबह पता किया , तो पट्टूकोट्टाइ के दो रस्ते थे ,मैंने less traveled by चुना . बस धीरे धीरे भरने लगी . मूछ और लुंगी धारित पुरुष थे और अपनी सांवली काया को स्वर्ण से निखरती और मोगरे से सज्जित केशों वाली महिलाएं . मुझे समझते देर नहीं लगी की शायद भारत का आधा gold reserve तमिलनाडु में सुरक्षित है .खचाखच भरी बस में देश के एक प्रतिशत से भी कम लोगों को ढोने वाली मेट्रो की बड़ी याद आई. देश की ७० प्रतिशत ग्रामीण जनता को शायद ३-४ जन्मो बाद मेट्रो का सुख मिलेगा. बस घरों से मुह जोड़ के चलने वाली सड़क पे दौड़ पड़ी . पहली नज़र में यूँ लगा जैसे भोपाल से रायसेन वाली बस पे चढ़ गया हू. ड्राइवर ने जैसे ही गाने बजाने शुरू किये , मैं हर गाने में रहमान साहब की आत्मा ढूँढने लगा .

फिर गौर से बाहर झांकना शुरू किया . नारियल सूखे पत्तों की बारीक कारीगरी वाले घूंघट ओढ़े मुस्कुराती चाटें , साफ़ सुथरे घर ,आँगनो से गली में झांकते नारियल के पेढ़, जैसे दरबान आपकी बाँट जोह रहे हो . अपनी शिल्पकला पे इतराते मंदिरों के प्रवेश द्वार . चौकोर चमचमाते ताल , सब मंत्रमुग्ध कर चले .आज भी यहाँ कुरकुरे और लेस से ज्यादा मोगरे की दुकाने दिखती हैं .

अन्दर बस में लोग तमिल में बतिया रहे थे . किसी से कुछ पूछियेगा तो क्या पता चलेगा . आपको अपने अंग्रेजी ढंग से न बोल पाने पे झिझक और शर्म आती होगी , यहाँ लोगों को सिर्फ तमिल आने पे गर्व है . यहाँ तक कि बड़ी से बड़ी कम्पनियों ने भी अपने इश्तेहार तमिल में लगा रखे हैं . गाँव गाँव पिछले चुनाव कि बची हुई पालीथिन की पर्चियों ने गद्तंत्र में निहित प्रदूषण को बखूबी बयान किया .

यहाँ आम भी हैं और नीम भी , पर राज सिर्फ नारियल का चलता है . थोडा और आगे बाधा तो खेतों में नंगे पैर काम करती अधेढ़ उम्र की औरतें दिखी , शायद खेती का पूरे देश में आज भी वही हाल है . बिजली की १२ घंटे की कटौती ने सदी के सबसे बड़े king maker दिग्विजय सिंह के शासनकाल की याद दिलाई . खैर , देश तो सालों से ऐसा ही चल रहा है और ऐसे ही चलेगा , अग्नि ५ के परीक्षण के बाद यहाँ के ग्राम्य जीवन में क्या फर्क पड़ेगा , ये बात मेरी समझ से परे है .

२ घंटे का सफ़र ३ घंटे में पूरा हुआ . और दिल ख़ुशी से झूम रहा था . अगर आप गर्मी और पसीने की जंग लड़ सकते हैं , तो आपका स्वागत है . कभी फुर्सत मिले , तो निकल पड़िए किसी पट्टूकोट्टाइ को . कुंए के पानी और निबौलियों की मिठास आपको उम्र भर याद रहेगी ...!!

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