Thursday 26 April 2012

प्यार खाँ की साइकिलें...


बात सन १९९० की है. मैं पहली में था.स्कूली जूतों की आदत अभी तक नहीं पड़ी थी. पैरों में जकड़न सी महसूस होती थी. और खेल के वक़्त कितनी चप्पलें खो दी, याद नहीं. तब क्लास में साइकिल आना शान की बात थी. प्यार खाँ १ रुपये घंटे पर साइकिल किराये पर देते थे. मन पसंद साइकिल के लिए घंटों बैठना पड़ता था.बड़ी साइकिलों की सीट तक हम पहुचते नहीं थे, सो डंडे को पकड़ के कैंची स्टाइल में चलाते रहते थे.
मध्य प्रदेश सरकार ने जब लड़कियों को साइकिल बाटी, तो लडकों ने क्या जुर्म किया था, मुझे पता नहीं. पर इस साइकिल से न सिर्फ लड़कियों को फायदा हुआ, बल्कि उनके माँ बाप जो टोकरियाँ सर पर रख कर शहर में सब्जियां बेचने आते थे, उनको भी साधन मिल गया.
आज हर दिन एक नई गाडी लॉन्च होती है, पर वोह पागलपन नहीं दिखता. साइकिल मेरा हिस्सा थी, कार मेरी शान है, मेरा दिखावा है. रीवा से जे पी समेंत तक की १९ किलोमीटर की साइकिल यात्रा किसी भी कार के सफ़र से ज्यादा सुहानी थी.
गाँव की जिंदगी आज भी सहज और सरल है, चंद ज़रूरतों में जिंदगी कट जाती है, वहां आज भी जॉकी और लेवाइस के बिना लोग जी रहे हैं और मस्त हैं. यहाँ एक माल में जितनी बिजली खप जाती है, उतने के आधे में वहां सारा शहर जी रहा है.
कार में बैठे बैठे आपने खेत तो देखे होंगे. बेल की ताज़ी रसीली लौकी आपके फ्रिज में साद रहे अनारों से ज्यादा स्वाद देती है. पर आप नंगे पैर खेतों में नहीं जा सकते ना. आपको अन्सैकिलोस्टोमियासिस का खतरा जो है.
आप सिंगापोर के ट्रिप पर हैं, मलेशिया आपको रटा हुआ है, पर आपने २४ घंटे गाँव में कभी बिताये हो, शायद ये ना हो पाया. गाँव में रहट हैं, बैल गाड़ियाँ हैं, गुड पक़ रहा है और धान पीटी जा रही है. ट्यूबवेळ का पानी आपको वाटर पार्क्स भुला देगा. फेसबुक पे अपलोड करने के लिए आपके एस एल आर कैमरे के लिए भी वहां बहुत कुछ है, अपनी औडोमोस क्रीम मत भूलियेगा...मियाँ प्यार खाँ आपका इंतज़ार कर रहे हैं...

No comments:

Post a Comment