Sunday 6 May 2012

इबादत से परे...

इबादत से परे...
किसी काम से दो दिनों के लिए घर जाना पड़ा. पता नहीं वहां का घी शुद्ध घी क्यूँ लगता है, और यहाँ का घी डालडा ? खैर... मुझे तो ऐसे हजारों वहम हैं, जिन्हें न तो आप मानते हैं, न सरकार न सरकार के मुलाजिम.
वर्ण से कायस्थ हूँ. सो कायस्थों के एक कार्यक्रम में सम्मिलित होने चला गया. पर इसका मतलब  ये नहीं कि मैं जातिवाद का समर्थक हूँ. बैठे बैठे मन में बात कौंधी कि क्या हमारे देश को और मंदिर मस्जिद चाहिए या और स्कूल और अस्पताल? भाई जितने खर्चे में अक्षरधाम सरीखे मंदिर बनते हैं, उतने में तो शायद एक राज्य के हर गाँव में स्कूल खोले जा सकते हैं. वैसे भी जहाँ देखता हूँ, हर गली नुक्कड़ में छोटे बड़े इबादतखाने दिख ही जाते हैं. शायद यही बात है कि मैं सूफियों की वकालत करता हूँ. इसमें कोई आडम्बर नहीं है.जिस दिन हमारे देश में पर्याप्त स्कूल कालेज हो जाएँ, उसके बाद हम इबादतखाने बनाते रहें तो क्या बुरा है?

वैसे बात छेड़ने का मुद्दा कुछ और था. हुआ यूँ कि मैंने गौर किया कि कार्यक्रम में सिर्फ बच्चे और बुज़ुर्ग थे. २० से ३० साल के नौजवान कोई भी नहीं. फिर समझ में आया कि नौजवान तो सारे भोपाल, दिल्ली बंगलौर में बस गए हैं. और जो बच्चे आज यहाँ हैं, वो भी कल बड़े शहरों को निकल जायेंगे. बचेंगे सिर्फ ये बुज़ुर्ग जिन्होंने अपनी जवानी हमे पढ़ाने में खपा दी. एक पल को लगा हमारे छोटे शहर धीरे धीरे बूढ़े जर्ज़र और वीरान हो रहे हैं. यहाँ के मुद्दों की लड़ाई के लिए काबिल नौजवान खून तो बाहर अपनी रोज़ी रोटी और पहचान की लड़ाई लड़ रहा है. यहाँ नल से नाले का पानी आता है. यहाँ सीमेंट की नयी सड़कें मकानों की आधी मंजिल से ऊंची बना दी जाती हैं. यहाँ हर गली एक कचराघर है. यहाँ बिना हेलमेट के १४ साल के लड़के शहर में रेस लगते हैं. यहाँ खिड़कियाँ कम और बेनर ग्लेक्स ज्यादा हैं. और इस सब को सुधारने वाली नौजवान पीढ़ी महानगरों में "लिव इन" की जिंदगी जी रही है.

शायद मैं जल्दी वापस आ जाऊं. आधी उम्र तो जी ही चूका हूँ. दिल्ली में न जिंदगी में सुकून है न मौत में.हादसे तक में  मरने पर सिर्फ १० सेकण्ड की क्लिप आती है टी वी पर. किसी को गम नहीं होता.यहाँ गाँव में मरने पर मेरे पीछे रोने वाले तो हैं. गाँव वापस इसीलिए नहीं आना चाहता कि मुझे कोई अच्छा मौका या धंधा समझ आ रहा है यहाँ, या फिर मुझे किसी पहचान कि तलाश है, बल्कि इसीलिए आना चाहता हूँ कि समझ चुका हूँ कि ये गाँव ही मेरा हिस्सा है, यही मेरी पहचान है...!!!

No comments:

Post a Comment