Wednesday 16 May 2012

देश के टुकड़े ...

पड़ोस के एक बच्चे ने सामजिक शास्त्र का प्रश्न पुछा...
देश क्या है???
मैंने अपनी समझ से उत्तर दिया.. ऐसा  क्षेत्र जहाँ के लोग एक संस्कृति, एक सूत्र में बंधे हों, जो उस क्षेत्र की रक्षा, सम्पदा, प्रगति इत्यादि के निर्णय लेते हों, जो आम तौर पर अन्य देशों या क्षेत्रों से नदियों, सागर,पर्वतों इत्यादि द्वारा अलग हो जहाँ के निवासियों को  उस क्षेत्र में कहीं भी आने जाने  की छूट हो  और अन्य क्षेत्र उसे देश की मान्यता देते हों, एक देश कहलाता है,

तो क्या देश के टुकड़े किये जा सकते हैं???
मैं विस्मित था, यद्यपि उत्तर दिया "हाँ, यदि देशवासी इसे देश के हित में समझें, या फिर टुकड़ों के बाद जन्मे दोनों देशों के हित में समझें तो ऐसा हो सकता है." 
(मैं एक क्षण रुका और मैंने सोचा कि हमारे देश के बंटवारे में किस का हित था?? सिवाय एक परिवार के राजनैतिक हित के, मुझे बटवारे में किसी का हित समझ नहीं आया)

भारत में तो राज्य होते थे, इसे देश क्यूँ बनाया गया??
मैंने उसे समझाया कि १८५७ से पहले राज्य ही होते थे, १८५७ से राष्ट्रवाद का जन्म हुआ और लोगों ने "अखंड भारत" का स्वप्न देखा. 
तो १८५७ से पहले भारत नहीं था? 
था, पर एक अखंड राष्ट्र के स्वरुप की कल्पना नहीं थी.
और १९४७ में विभाजन भी हो गया? हमको तो आधा देश मिला है-बच्चे ने मायूसी से कहा...
(अखंड भारत" के स्वप्न के मात्र ९० वर्ष के भीतर इसके २ टुकड़े हो गए, मैं इस सत्य से विदित था, इसकी टीस से नहीं. बच्चे का तर्क सही था, शहीद भगत सिंह ने जिस लाहोर असेम्बली में बम फेका था मैं वहां जा नहीं सकता, वो भारत का हिस्सा नहीं रहा...)
बच्चा चला गया और मैं सोचता रह गया कि आज़ादी के बाद सन ७२ तक लोग लाहौर  नहीं जा सकते थे, ७२ के बाद एल ओ सी खींच दी गई और लोग एल ओ सी के उस पार के कश्मीर नहीं जा सकते, किसी दिन कोई और लाइन खींची जा सकती है (२ बार ऐसा हो चुका है) और लोग दक्कन तक सिमट जायेंगे, कौन जाने तब जयपुर, और अमृतसर भी एल ओ सी के उस पार पड़ें. चौंकिए मत, बटवारे से पहले लाहौर  भी इसी तरफ था...

स्वर्गीय श्री नाथूराम गोडसे का व्यक्तित्व कैसा था, इस पर मैं कोई टिपण्णी नहीं करना चाहता, हाँ पर इतना अवश्य जानता हूँ कि शायद उनकी अंतिम इच्छा कि" उनकी अस्थियाँ अखंड भारत में बहती सिन्धु में बहाई जाएँ' कभी पूरी न हो सके....

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