Tuesday 15 May 2012

कुचल दिए गए तो???

बीती रात टी वी पर किस्सा आ रहा था कि किसी रईसजादे ने अपनी महंगी गाड़ी से किसी गर्भवती महिला को कुचल दिया.
अगर यह हादसा मेरे आपके साथ हो तो क्या करेंगे? 
इस व्यवस्था को बदलने के तरीके हैं, मगर वो लागू नहीं किये जायेंगे. ऐसा किया जा सकता है की दिल्ली जैसे व्यस्त शहरों  में गाड़ियों की स्पीड और एससिलरेसन लिमिट रख दी जाए. लोग तो इसे मानेंगे नहीं, पर ये भी किया जा सकता है की गाड़ियों को इस तरह से बनाया जाए की वो निर्धारित स्पीड और एससिलरेसन में चलें...
परिवहन व्यवस्था में दुर्घटनाओ और ओवर लोडिंग के चलते किसी आर टी ओ अधिकारी की नौकरी गई हो, मैंने अभी तक नहीं सुना...
ऐसे पिछले कितने हादसों में गुनाहगारों को सजा हुई, मैं नहीं जानता, मैंने कभी नहीं सुना.पुलिस तो १० दिन में उसे पकड़ भी नहीं पाई.पता नहीं ऐसे लोगों को पुलिस खुद क्यूँ नहीं पकड़ पाती? यह लोग शान से अदालत के सामने चमचमाती गाड़ियों में उतारते हैं, और जमानत पर रिहा हो जाते हैं, अगर गलती से निचली अदालत १०-१२ साल तक जिरह के बाद इनको १-२ साल कि सज़ा सुना भी दे तो ये केस ऊपरी अदालत में ले जायेंगे.
फरियादी जो पहले ही अपना बेशकीमती खो चुके होते हैं, सालों अपना चैन सुकून पैसा लगा कर निराश होते रहते हैं, और इन रईसजादों के वकीलों के सामने घुटने टेक देते हैं.
मुझे लगता है अदालतों को आम जनता के केसों में देरी से कोई सरोकार नहीं.
यह आलम बदलने वाला नहीं, क्यूंकि हम तभी बाहर निकलेंगे जब हमारा कोई अपना कुचल दिया जाए...किसी गैर के कुचले जाने से हमे क्या???

मैं रात भर सोचता रहा कि इस व्यवस्था में इन्साफ का कोई दूसरा तरीका है ???
बेहतर है कि अगर कोई मेरे परिवार को कुचले तो बजाये अदालत का मुह देखने के मैं हिम्मत कर के खुद ही उसे गोली मार दूं
अदालतें कब ये समझेंगी कि इन मुद्दों  में इन्साफ पाने की मरती उम्मीद को जिन्दा रखने की  यातना, किसी क़त्ल की सज़ा से कहीं ज्यादा होती है...

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