Tuesday 15 May 2012

आपके अखबार...

आज कल जिसे देखो, मुझे समझाने पे तुला है की देश में कितना भ्रष्टाचार है.सोशल साइट्स पर जहाँ देखो, किसी नेता की एडिटेड पिक्चर के नीचे पचास कमेन्ट दिखते हैं. भई मैं देश का पढ़ा लिखा नागरिक हूँ, मैं भी जानता हूँ कि देश के क्या हाल हैं, पर लोगों से गुजारिश है कि मुझे समझाने पर न तुल जाएँ, वो भी वह बातें जो हम वैसे भी समझते हैं.
सोशल साइट्स पारम्परिक मीडिया से कई मायने में बेहतर है, यहाँ विचारों का आदान प्रदान स्वच्छंदता से होता है, लेकिन दूसरों को मर्यादा का पाठ सिखाने वाले गुमनाम महापुरुषों से मेरा नम्र निवेदन है कि कृपया अपनी मर्यादा भंग न करें.
ऑरकुट और फेसबुक ने कई बिछड़े दोस्तों से मिलवाया, कई जिनकी के. जी. की ग्रुप फोटो निकल कर उनकी आज की सूरत से मिला के घंटों हंसा. मैं तकनीक का गुलाम हूँ कि नहीं, नहीं जानता, लेकिन दोस्तों का गुलाम तो हूँ ही.
सरकारों ने नया तरीका खोज लिया है जनता को फुसलाने का. जब जनता या इसके नुमाइंदे  कोई  मुद्दा उठाते हैं, सरकार बातचीत के नाम पर उसको महीनो लटकाती है, फिर बीच में किसी और नए मसले को हवा दे दी जाती है और पिछला मुद्दा भुला दिया जाता है. सरकार से इस से ज्यादा की उम्मीद है भी नहीं. इनके कदम इतने ठोस हैं की कभी उठते ही नहीं. गलती मेरी है, मुझे मुद्दे जल्दी भूल जाने की आदत पड़ गई है.कभी पिछले बरस के अखबार उठाऊँ तो समझ आये कि कितने मुद्दों ने एक पल को मेरी आत्मा कि झंझोर  दिया था, जिनकी अब मुझे याद भी नहीं. मैं ठहरा लाला आदमी, सो मैंने मुद्दे और अखबार रद्दी के भाव बेच दिए.
अब तो आप से उम्मीद लगाये बैठा हूँ... आपने तो अपने अखबार सम्हाल के रखे होंगे न...???

No comments:

Post a Comment